अगर आपका बच्चा डेढ़ साल या इससे बड़ा है, तो आप उसे टॉयलेट ट्रेनिंग देने यानी टॉयलेट का उपयोग सिखाने के बारे में ज़रूर सोच रहे होंगे। परिवार के सदस्यों, दोस्तों और इंटरनेट के ज़रिए आप इस बारे में काफी जानकारी इकट्ठी कर रहे होंगे। इसलिए आपको बच्चों की टॉयलेट ट्रेनिंग (toilet training in hindi) के बारे में काफी बातें पता चल चुकी होंगी, लेकिन इनके साथ ही आपको लड़कों और लड़कियों की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर के बारे में भी पता होना चाहिए।
यूँ तो लड़कों और लड़कियों की टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) मूल रूप से एकसमान होती है, लेकिन कुछ मामलों में इनमें थोड़े अंतर होते हैं। उनके शरीर एक-दूसरे से काफी अलग होते हैं, इसलिए उनकी ज़रूरतें और ट्रेनिंग के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां भी अलग होती हैं।
इस ब्लॉग में हम आपको लड़की व लड़के की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर की जानकारी दे रहे हैं, ताकि आप एक एक्सपर्ट यानी विशेषज्ञ की तरह अपने बच्चे की ज़रूरतों के अनुसार उसे टॉयलेट का इस्तेमाल करना सिखा सकें।
1. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: शुरुआत कब करें?
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Shuruat kab kare)
आमतौर पर हर बच्चे की टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) की शुरुआत का समय उसके शारीरिक और मानसिक विकास पर निर्भर करता है। मगर, बच्चों को टॉयलेट यानी शौचालय का उपयोग सिखाने की शुरुआत करने से पहले आपको इससे जुडी ज़रूरी चीज़ों पर ध्यान देना चाहिए।
लड़की: विशेषज्ञों के अनुसार, लड़कियां लड़कों की तुलना में शौचालय में रुचि दिखाने की शुरुआत जल्दी करती हैं। ज्यादातर लड़कियां 18 महीने की होने के बाद टॉयलेट ट्रेनिंग (toilet training in hindi) सीखने के लक्षण दिखाने लगती हैं। हालांकि कुछ लड़कियां चार वर्ष की होने तक टॉयलेट का उपयोग करना सीख पाती हैं।
लड़का: लड़कों को शौचालय का उपयोग सीखने की कोई जल्दी नहीं होती है। इसलिए ज्यादातर लड़के दो साल के होने के बाद ही टॉयलेट में रुचि दिखाने लगते हैं। हालांकि कुछ लड़के दो साल के होने से पहले शौचालय का इस्तेमाल करना सीख सकते हैं।
2. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: टॉयलेट ट्रेनिंग का तरीका
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Toilet training ka tarika)
भले ही अपनी बेटी और बेटे को खिलाने या चलाने के लिए आपने एक जैसी तरकीबों का सहारा लिया हो, लेकिन टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) के दौरान एक तरीका दोनों के लिए काम नहीं कर सकता है। उनकी ज़रूरतों के अनुसार आपको अलग तरीके अपनाने होंगे।
लड़की: लड़कियों की योनि व मूत्रनली, गुदा के काफी पास होने की वजह से, गुदा के हानिकारक कीटाणु उनकी योनि व मूत्रनली में जा सकते हैं और इससे उन्हें संक्रमण हो सकता है। इसलिए उन्हें पॉटी (मलत्याग) करने के बाद गुदा को आगे से पीछे की तरफ हाथ ले जाकर साफ करना सिखाएं। इसके साथ ही हर बार पेशाब करने के बाद उन्हें योनि को धोना व पौंछना भी सिखाएं।
लड़का: हालांकि लड़कों को हाथ आगे से पीछे ले जाकर गुदा को साफ करना सिखाने की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन उन्हें भी गुदा की अच्छी तरह से सफाई करना ज़रूर सिखाएं। इसके अलावा उन्हें पेशाब करते समय लिंग को नीचे की तरफ करना सिखाएं, ताकि पेशाब आपके कपड़ों या मुँह पर आने के बजाय टॉयलेट में ही जाए। साथ ही बच्चे को पेशाब करने के बाद लिंग को हिलाकर अतिरिक्त पेशाब हटाना सिखाएं, ताकि उसके कपड़े गीले ना हों।
3. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: पॉटी सीट या चेयर कैसे चुनें?
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Potty seat ya chair kaise chune)
अगर आप इंग्लिश टॉयलेट का उपयोग करते हैं और अपने बच्चे के लिए पॉटी सीट या पॉटी चेयर (बच्चों की टॉयलेट ट्रेनिंग लिए ऑनलाइन मिलने वाली खिलौने जैसी प्लास्टिक की आकर्षक टॉयलेट चेयर या सीट) खरीदना चाहते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि इस मामले में लड़कियों व लड़कों की ज़रूरतें काफी अलग होती हैं।
लड़की: आप अपनी बेटी के लिए किसी भी डिजाइन की पॉटी चेयर या सीट का चयन कर सकते हैं। इसके साथ ही आप उसकी पसन्द के रंग या डिजाइन की पॉटी चेयर या सीट भी बिना किसी परेशानी के खरीद सकते हैं।
लड़का: अपने बेटे के लिए पॉटी चेयर या सीट खरीदते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उसमें पेशाब को बाहर निकलने से रोकने वाला गार्ड (स्प्लैश गार्ड) लगा हो। अगर आप बिना स्प्लैश गार्ड वाली पॉटी चेयर या सीट खरीदेंगे, तो बच्चे का पेशाब बाहर निकल सकता है और आपके कपड़े, फर्श आदि खराब हो सकते हैं।
4. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: शौचालय में बिठाकर कैसे रखें?
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Toilet me bithakar kaise rakhe)
आमतौर पर शौचालय में इस्तेमाल होने वाली ज्यादातर चीजें लड़के व लड़की दोनों के काम आ सकती हैं, लेकिन कुछ मामलों में लड़के व लड़कियों को अलग-अलग चीज़ों की ज़रूरत होती है।
लड़की: ज्यादातर लड़कियां गुड़ियों से खेलना पसंद करती हैं, ऐसे में उन्हें टॉयलेट में एक जगह बिठाकर रखने में ये आपकी मदद कर सकती हैं। आजकल बाजार में ऐसी गुड़ियाएं व अन्य खिलौने भी मौजूद हैं, जिनसे आप अपनी बेटी को टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) दे सकते हैं। गुड्डे-गुड़ियों के अलावा आप उसे किसी अच्छी कहानियों की किताब के ज़रिए भी शौचालय में एक जगह बिठाकर रख सकते हैं।
लड़का: हालांकि ऐसा नहीं है कि लड़कों को गुड़ियाएं अच्छी नहीं लगतीं, लेकिन ज्यादातर बच्चे गुड़ियों से खेलना पसंद नहीं करते हैं। इसलिए इनकी मदद से उन्हें एक जगह बिठाकर रखना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। उन्हें आमतौर पर जानवरों की कहानियां, रोमांचक किस्से और कार्टून्स या सुपरहीरोज़ के खिलौने पसन्द आते हैं। इसलिए इनकी मदद से आप उसे टॉयलेट में एक जगह बिठाकर रख सकते हैं।
5. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: ट्रेनिंग के दौरान ईनाम
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Training ke dauran rewards)
आपने अक्सर सुना होगा कि ईनाम देने से बच्चा टॉयलेट के इस्तेमाल के लिए प्रेरित होता है। ज्यादातर परिस्थितियों में यह तरकीब काम करती है। मगर, अपने बच्चे की टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) के लिए ईनाम का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखें कि इस मामले में लड़कों और लड़कियों में बहुत बड़ा अंतर होता है।
लड़की: लड़कियां इस मामले में काफी समझदार होती हैं और आप उन्हें जो भी ईनाम देते हैं (जैसे कोई स्टिकर, टॉफी, चॉकलेट आदि), वो उसे खुशी से ले लेती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, लड़कियां पूरी टॉयलेट ट्रेनिंग (toilet training in hindi) के दौरान एक ही तरह के ईनाम देने पर भी खुश रहती हैं और पूरी लगन से टॉयलेट का उपयोग करना सीखती हैं।
लड़का: इस मामले में लड़के ज़रा नटखट होते हैं और वो अक्सर अलग-अलग तरह के ईनामों की मांग करते हैं। साथ ही वो एक ही तरह के ईनाम लेना पसंद नहीं करते हैं और उनसे जल्दी ही ऊब जाते हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिये आज आपने बच्चे को एक स्टिकर दिया और वो उसे पसंद आया। अब कल दोबारा स्टिकर देने पर बच्चा उसे लेने से इनकार कर सकता है। इसलिए लड़कों के लिए आपको अलग-अलग तरह के ईनाम (जैसे कोई खाने की पौष्टिक वस्तु, टॉफी, चॉकलेट, छोटे खिलौने, किताबें आदि) रखने चाहिए और उन्हें बदल-बदल कर ईनाम देने चाहिए।
6. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: टॉयलेट का उपयोग करके दिखाना
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Toilet use karke dikhana)
बच्चों के लिए शौचालय का उपयोग सीखना बेहद आसान हो सकता है, अगर कोई उन्हें यह करके दिखाए। लड़के और लड़की के लिए टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) का यह चरण काफी अलग होता है।
लड़की: लड़कियों को शौचालय का उपयोग करके दिखाने में उनकी मां मदद कर सकती हैं। इस मामले में उनके पिता उनकी मदद नहीं कर सकते हैं।
लड़का: लड़कों के मामले में स्थिति थोड़ी अलग होती है। ज्यादातर समय उन्हें मां ही टॉयलेट ट्रेनिंग (toilet training in hindi) देती हैं, लेकिन खड़े होकर पेशाब करने के मामले में वो उनकी मदद नहीं कर सकती हैं। इस मामले में उनके पिता उन्हें दिखा सकते हैं कि लड़कों को पेशाब कैसे करना चाहिए।
7. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: एक जगह बैठने की क्षमता व रुचि
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Ek jagah baithne ki kshamta aur ruchi)
अगर हम टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) के दौरान एक जगह बैठने की क्षमता और टॉयलेट के उपयोग में रुचि की बात करें, तो एक बार फिर लड़कियां लड़कों से अलग (बेहतर) होती हैं। इस दौरान बच्चे कई बार आपके सब्र की परीक्षा भी ले सकते हैं, इसलिए खुद को हर परिस्थिति के लिए तैयार रखें।
लड़की: आपने सुना होगा कि लड़कियां लड़कों की तुलना में ज्यादा जल्दी समझदार होती हैं। शायद इसीलिए वो ज्यादा समय तक टॉयलेट में शांति से बैठी रह सकती हैं। उन्हें टॉयलेट सीट पर बैठकर बातें करना और जल्दी से ‘बड़ी’ होना बेहद पसंद होता है।
लड़का: कई लड़कों के लिए टॉयलेट का उपयोग सीखना, खेलने से ज्यादा बेहतर नहीं होता है। उन्हें खेलना, टॉयलेट का उपयोग करने से ज्यादा अच्छा लगता है, इसलिए टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) के दौरान वो वहां शांत बैठना कम पसंद करते हैं। यह भी हो सकता है कि वो शुरुआत में टॉयलेट में रुचि दिखाए और थोड़े ही दिनों में उसका मन इससे हट जाए।
इसलिए टॉयलेट ट्रेनिंग (toilet training in hindi) के दौरान बच्चे के व्यवहार पर कड़ी नजर रखें। अगर आपको लगे कि वह परेशान हो रहा है या सीखना नहीं चाह रहा है, तो या तो सिखाने का तरीका बदलें या फिर कुछ समय के लिए टॉयलेट ट्रेनिंग बंद कर दें।
8. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: बैठने की अवस्था
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Baithne ki position)
टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) के दौरान बच्चे के लिए शौचालय में बैठना सीखना बेहद ज़रूरी होता है। मगर टॉयलेट में लड़की या लड़के के बैठने की अवस्था अलग होती है।
लड़की: लड़कियों को टॉयलेट सीट पर थोड़ा पीछे होकर बैठने के लिए प्रेरित करें, ताकि उनकी योनि व गुदा की दिशा टॉयलेट के अंदर की तरफ हो। इससे उनका पेशाब टॉयलेट के बाहर नहीं गिरेगा। साथ ही उन्हें उनके घुटने चौड़े करके बैठने के लिए कहें, इससे उनकी पैल्विक मांसपेशियों को आराम मिलता है और उन्हें शौच करने में आसानी होती है।
अगर आपकी बेटी खड़ी होकर पेशाब करने की ज़िद करती है, तो उसे ऐसा करने दें। जब उसके कपड़े खराब होंगे या वह अपनी माँ को बैठकर पेशाब करते हुए देखेगी, तो वह भी बैठकर पेशाब करने के लिए प्रेरित होगी।
लड़का: लड़कों को टॉयलेट सीट पर बैठते समय अपना लिंग नीचे की तरफ रखना सिखाएं। इससे पेशाब करते समय उनका पेशाब टॉयलेट में ही जाता है। लिंग की दिशा नीचे की तरफ रखने के लिए, आप उन्हें आगे की तरफ झुककर बैठने के लिए कह सकते हैं। इससे उन्हें शौच करने में भी आसानी होगी।
अगर आपका लड़का बैठकर पेशाब करता है, तो उसे जबरदस्ती खड़े होकर पेशाब करने के लिए ना कहें। इसके बजाय वह अपने पिता या बड़े भाई को देखकर ऐसा करना सीख सकता है।
9. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: ट्रेनिंग के दौरान कपड़े गंदे करना
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Training ke dauran kapde gande karna)
टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) के दौरान व इसके बाद बच्चों का कपड़े गंदे करना सामान्य है और दोनों ही लिंगों के बच्चे ऐसा कर सकते हैं। मगर, आमतौर पर लड़के इस मामले में थोड़ा आगे होते हैं।
लड़की: ज्यादातर लड़कियों को गंदा होना पसंद नहीं होता है। वो इस बात को काफी जल्दी समझ जाती हैं कि अपना खेल या कोई और काम बीच में छोड़कर टॉयलेट जाने से, वो अपने कपड़े साफ-सुथरे रख सकती हैं। कभी-कभार वो भी अपने कपड़े खराब कर लेती हैं, लेकिन एक बार सबक लेने के बाद वो उसे याद रखती हैं। शौचालय का इस्तेमाल करना पूरी तरह से सीख लेने के बाद आमतौर पर लड़कियां अपने कपड़े खराब नहीं करती हैं।
लड़का: लड़के इस मामले में थोड़े लापरवाह होते हैं और लड़कियों की तुलना में अपने कपड़े ज्यादा खराब करते हैं। केवल इतना ही नहीं, कई लड़कों को तो गीले और गंदे कपड़ों में घूमने में कोई परेशानी नहीं होती है और वो कपड़ों में शौच करने के बाद भी पूरे घर में घूमते रहते हैं। इसके लिए तैयार रहें और गंदे होने पर बच्चे के कपड़े तुरंत बदल दें।
इस दौरान कपड़े गंदे करने के लिए बच्चे को डांटें नहीं, इससे उसके दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है। इसके बजाय उसे प्यार से समझाएं।
10. लड़के और लड़की की टॉयलेट ट्रेनिंग में अंतर: सीखने में कितना समय लगता है?
(Difference between Girl and boy toilet training in hindi: Sikhne me lagne vala samay)
आप किसी भी बच्चे पर टॉयलेट का उपयोग सीखने की समयसीमा थोप नहीं सकते हैं। वो अपने हिसाब से सीखते हैं, मगर विशेषज्ञों के अनुसार आमतौर पर लड़कियां लड़कों की तुलना में जल्दी सीखती हैं।
लड़की: करीब तीन महीनों में लड़कियां पूरी तरह से शौचालय का उपयोग करना सीख सकती हैं। यानी अब वे जान जाती हैं कि उन्हें कब टॉयलेट जाना है, अपने आप वहां चली जाती हैं और लगभग बहुत थोड़ी मदद से या अपने आप टॉयलेट का उपयोग कर लेती हैं।
लड़का: भले ही लड़के टॉयलेट ट्रेनिंग (potty training in hindi) के दौरान काफी लापरवाही दिखाते हैं, लेकिन आमतौर पर करीब चार से पांच महीनों में वो टॉयलेट का उपयोग करना सीख जाते हैं। उन्हें नियमित रूप से प्रेरित किये जाने की ज़रूरत होती है। इसलिए विभिन्न तरीकों से उनका उत्साह बढ़ाएं और उन्हें प्यार से सिखाएं। आपके और उसके कठिन परिश्रम का अच्छा नतीजा जल्दी ही सामने आएगा।
टॉयलेट ट्रेनिंग (toilet training in hindi) बच्चे और आप दोनों के लिए काफी मुश्किल और लम्बी प्रक्रिया हो सकती है। इसके लिए आप उस तरीके का पालन करें, जो बच्चे व आपके लिए अच्छा हो और उसे परेशानी नहीं हो। ब्लॉग में बताए गए अंतरों से आप इतना तो समझ ही गए होंगे कि लड़कियों को शौचालय का उपयोग सिखाना, लड़कों को सिखाने की तुलना में थोड़ा आसान हो सकता है।
हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि लड़के विकास के मामले में पीछे रह जाएंगे। सभी बच्चे अपने हिसाब से बढ़ते हैं, इसलिए थोड़ी देर से ही सही, लेकिन आपका बच्चा भी सभी चीजें सीख जाएगा। अगर आपको बच्चे के विकास को लेकर किसी तरह की आशंका है, तो इस बारे में एक बार डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।